Monday, May 18, 2015

जेव्हा तिची नि माझी चोरुन भेट झाली

जेव्हा तिची नि माझी चोरुन भेट झाली
झाली फुले कळ्यांची, झाडे भरात आली

दूरातल्या दिव्यांचे मणिहार मांडलेले
पाण्यात चांदण्यांचे आभाळ सांडलेले
कैफात काजव्यांची अन पालखी निघाली

केसांतल्या जुईचा तिमिरास गंध होता
श्वासातल्या लयीचा आवेग अंध होता
वेड्या समर्पणाची वेडी मिठी मिळाली

नव्हतेच शब्द तेव्हा मौनात अर्थ सारे
स्पर्शात चंद्र होता, स्पर्शात लाख तारे
ओथंबला फुलांनी अवकाश भोवताली

पत्रास कारण की

पत्रास कारण की, बोलायची हिंम्मत नाही
पावसाची वाट बघण्या आता काही गंमत नाही

माफ कर पारो मला, नाही केल्या पाटल्या
मोत्यावानी पीकाला ग नाही कवड्या भेटल्या
"चार बुकं शिक" असं कसं सांगु पोरा
"गहाण ठेवत्यात बापाला का ?" विचार कोणा सावकारा
गुरांच्या बाजारी हिथं माणसा मोल नाही
मी नाही बोललो पण पोरा तु तरी बोल काही

ढवळ्या पवळ्या माफी द्यावी तुम्हा लय पिळून घेतलं
पण कोरड्या जमीनीनं सारं पिकं गिळून घेतलं
नाही लेकरा भाकर, नाही गुरा चारा
टिपूस नाही आभाळात, गावंच्या डोळा धारा
कर्जापायी भटकून शिरपा ग्येला लटकून
दारुपायी गेला असं लिवलं त्यांनी हटकून
गडी व्हता म्हराठी पन राजाला किंमत नाही

आई तुझ्या खोकल्याचा घुमतो आवाज कानी
नाही मला जमलं ग तुझं साधं औषध-पाणी
मैलोमैल हिथं कुठं दवाखाना न्हाई
रोगर मात्र सहजासहजी कुटं बी गावतंय्‌ आई
शेतात न्हाई कामंच ते, जीव द्याया आलं कामी
माजं अन्‌ सरकारचं ओजं आता व्हईल कमी
मरता मरता कळलं हिथं शेतकर्‍या किंमत न्हाई

हि वाट कुठे अन कशी मला नेईल

हि वाट कुठे अन कशी मला नेईल
मी आज कुठे अन कुठे उद्या जाईन 

मी पाठ फिरवुनी चालत गेलो दूर 
कधी मनास भिडला नाही व्याकुळ सूर 
का आज बंधने तोडून आला पूर 
जे कधीच नाही दिसले ते पाहीन 
मी आज कुठे अन कुठे उद्या जाईन 

तुटले पुरती मी तरी धावते आहे 
पापणीत ओल्या उगाच हसते आहे 
मन पुन्हा पुन्हा पण मला सांगते आहे 
एकटीच होते एकटीच राहीन 
मी आज कुठे अन कुठे उद्या जाईन

कुणी बुवा मांडतो खेळ इथे श्रद्धेचा 
देहाचा कुणी मायेचा कुणी सत्तेचा 
मज ठाऊक  एकच मालक या जगताचा 
त्या ईश्वरास मी रातंदिन शोधीन 
मी आज कुठे अन कुठे उद्या जाईन

धावतो कशाच्या मागे मी तोडून सारे धागे 
काळोख सरेना मज वाट दिसेना 
दिसले सुख जे दुरुनी फिरुनी लपले 
क्षण एक सुखाचा दैवाला मागेन 
मी आज कुठे अन कुठे उद्या जाईन
 
 
 

ऐल माझा गाव, पैल माझा देव गं

ऐल माझा गाव, पैल माझा देव गं 
जाऊ दे सोडून नीती ओढून नेतो भाव गं ...

मिटतात पापण्या आणि उसळतो आठवणींचा सागर
मी समिधा माझी वाहून जपला तुझ्या स्मृतींचा जागर 
कंठात दाटतो हुंदका अन काळजात घाव गं ...
 
वाळूत खुणा अजुनी का जसे व्रण ताजेच असावे
ओझे धरणीवरती जे माझे अस्तित्व मिटावे 
माझ्या पापी राखेला इथे नको ठाव गं ...
 
मी मोहाने थरथरले, मी वाऱ्यावर भिरभिरले 
या दिशा दहा हसतात, मी इथे फक्त फरफटले 
आता पुन्हा दे धीर, भोवती भूतांचा घेर 
हि आर्त ऐक रे हाळी, वासना सांडो आंधळी 
हा तुटता आतून पीळ, सावरे मला घननीळ 
ऐल माझा गाव पैल माझा देव गं ..

Thursday, May 14, 2015

मेरे महबूब तुझे मेरी मुहब्बत की क़सम

मेरे महबूब तुझे मेरी मुहब्बत की क़सम
फिर मुझे नरगिसी आँखों का सहारा दे दे
मेरा खोया हुआ रंगीन नज़ारा दे दे, मेरे महबूब तुझे ...
भूल सकती नहीं आँखें वो सुहाना मंज़र

जब तेरा हुस्न मेरे इश्क़ से टकराया था
और फिर राह में बिखरे थे हज़ारोँ नग़में
मैं वो नग़में तेरी आवाज़ को दे आया था
साज़-ए-दिल को उन्हीं गीतों का सहारा दे दे
मेरा खोया ...

याद है मुझको मेरी उम्र की पहली वो घड़ी
तेरी आँखों से कोई जाम पिया था मैने
मेरे रग रग में कोई बर्क़ सी लहराई थी
जब तेरे मरमरी हाथों को छुआ था मैने
आ मुझे फिर उन्हीं हाथों का सहारा दे दे
मेरा खोया ...

मैने इक बार तेरी एक झलक देखी है
मेरी हसरत है के मैं फिर तेरा दीदार करूँ
तेरे साए को समझ कर मैं हंसीं ताजमहल
चाँदनी रात में नज़रों से तुझे प्यार करूँ
अपनी महकी हुई ज़ुल्फ़ों का सहारा दे दे
मेरा खोया ...

ढूँढता हूँ तुझे हर राह में हर महफ़िल में
थक गये हैं मेरी मजबूर तमन्ना के कदम
आज का दिन मेरी उम्मीद का है आखिरी दिन
कल न जाने मैं कहाँ और कहाँ तू हो सनम
दो घड़ी अपनी निगाहों का सहारा दे दे
मेरा खोया ...

सामने आ के ज़रा पर्दा उठा दे रुख़ से
इक यही मेरा इलाज-ए-ग़म-ए-तन्हाई है
तेरी फ़ुरक़त ने परेशान किया है मुझको
अब मिल जा के मेरी जान भी बन आई है
दिल को भूली हुई यादों का सहारा दे दे
मेरा खोया ...

ऐ मेरे ख़्वाब की ताबीर मेरी जान-ए-जिगर
ज़िन्दगी मेरी तुझे याद किये जाती है
रात दिन मुझको सताता है तस्सव्वुर तेरा
दिल की धड़कन तुझे आवाज़ दिये जाती है
आ मुझे अपनी सदाओं का सहारा देदे
मेरा खोया ...

मेरे महबूब तुझे मेरी मुहब्बत की कसम
फिर मुझे नर्गिसी आँखों का सहारा देदे
मेरा खोया हुआ रंगीन नज़ारा देदे
मेरे महबूब तुझे ...

चौदहवीं का चाँद हो

चौदहवीं का चाँद हो, या आफ़ताब हो
जो भी हो तुम खुदा कि क़सम, लाजवाब हो

ज़ुल्फ़ें हैं जैसे काँधे पे बादल झुके हुए
आँखें हैं जैसे मय के पयाले भरे हुए
मस्ती है जिसमे प्यार की तुम, वो शराब हो
चौदहवीं का ...

चेहरा है जैसे झील मे खिलता हुआ कंवल
या ज़िंदगी के साज पे छेड़ी हुई गज़ल
जाने बहार तुम किसी शायर का ख़्वाब हो
चौदहवीं का ...

होंठों पे खेलती हैं तबस्सुम की बिजलियाँ
सजदे तुम्हारी राह में करती हैं कैकशाँ
दुनिया-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ का तुम ही शबाब हो
चौदहवीं का ...

छोड़ आए हम, वो गलियाँ

छोड़ आए हम, वो गलियाँ - ४

जहाँ तेरे पैरों के, कँवल गिरा करते थे
हँसे तो दो गालों में, भँवर पड़ा करते थे
हे, तेरी कमर के बल पे, नदी मुड़ा करती थी
हँसी तेरी सुन सुन के, फ़सल पका करती थी
छोड़ आए हम ...

(हो, जहाँ तेरी एड़ी से, धूप उड़ा करती थी
सुना है उस चौखट पे, अब शाम रहा करती है) - २
(लटों से उलझी-लिपटी, इक रात हुआ करती थी
कभी कभी तखिये पे, वो भी मिला करती है) - २
छोड़ आए हम ...

दिल दर्द का टुकड़ा है, पत्थर की डली सी है
इक अंधा कुआँ है या, इक बंद गली सी है
इक छोटा सा लम्हा है, जो ख़त्म नहीं होता
मैं लाख जलाता हूँ, यह भस्म नहीं होता
यह भस्म नहीं होता ...
छोड़ आए हम ...

हुज़ूर इस कदर भी न इतरा के चलिये

हुज़ूर इस कदर भी न इतरा के चलिये
खुले आम आँचल न लहरा के चलिये (२)

कोई मनचला गर पकड़ लेगा आँचल
ज़रा सोचिये आप क्या कीजियेगा
लगा दें अगर बढ़के ज़ुल्फ़ों में कलियाँ
तो क्या अपनी ज़ुल्फ़ें झटक दीजियेगा
हुज़ूर इस ...

बहुत दिलनशीं हैं हँसी की ये लड़ियां
ये मोती मगर यूँ ना बिखराया कीजे
उड़ाकर न ले जाये झोंका हवा का
लचकता बदन यूँ ना लहराया कीजे
हुज़ूर इस ...

बहुत खूबसूरत है हर बात लेकिन
अगर दिल भी होता तो क्या बात होती
लिखी जाती फिर दास्तान-ए-मुहब्बत
एक अफ़साने जैसे मुलाक़ात होती
हुज़ूर इस ...

Friday, May 8, 2015

सागरा प्राण तळमळला

ने मजसी ने परत मातृभूमीला सागरा प्राण तळमळला ॥धृ॥
 
भूमातेच्या चरणतला तुज धूता मी नित्य पाहिला होता
मज वदलासी अन्य देशि चल जाऊ सृष्टिची विविधता पाहू
तैं जननीहृद् विरहशंकितहि झाले परि तुवां वचन तिज दिधले
मार्गज्ञ स्वये मीच पृष्ठि वाहीन त्वरित या परत आणीन
विश्वसलो या तव वचनी मी जगद्नुभवयोगे बनुनी मी
तव अधिक शक्ती उद्धरणी मी येईन त्वरे कथुनि सोडिले तिजला ॥
सागरा प्राण तळमळला
 
शुक पंजरि वा हरिण शिरावा पाशी ही फसगत झाली तैशी
भूविरह कसा सतत साहु या पुढती दशदिशा तमोमय होती
गुणसुमने मी वेचियली या भावे की तिने सुगंधा घ्यावे
जरि उद्धरणी व्यय न तिच्या हो साचा हा व्यर्थ भार विद्येचा
ती आम्रवृक्षवत्सलता रे नवकुसुमयुता त्या सुलता रे
तो बाल गुलाबहि आता रे फुलबाग मला हाय पारखा झाला ॥
सागरा प्राण तळमळला
 
नभि नक्षत्रे बहुत एक परि प्यारा मज भरतभूमिचा तारा
प्रासाद इथे भव्य परी मज भारी आईची झोपडी प्यारी
तिजवीण नको राज्य मज प्रिया साचा वनवास तिच्या जरि वनिचा
भुलविणे व्यर्थ हे आता रे बहु जिवलग गमते चित्ता रे
तुज सरित्पते जी सरिता रे त्वदविरहाची शपथ घालितो तुजला ॥
सागरा प्राण तळमळला
 
या फेनमिषें हससि निर्दया कैसा का वचन भंगिसी ऐसा
त्वत्स्वामित्वा सांप्रत जी मिरवीते भिनि का आंग्लभूमीते
मन्मातेला अबला म्हणुनि फसवीसी मज विवासनाते देशी
तरि आंग्लभूमी भयभीता रे अबला न माझि ही माता रे
कथिल हे अगस्तिस आता रे जो आचमनी एक क्षणी तुज प्याला ॥
सागरा प्राण तळमळला

Tuesday, May 5, 2015

तुला पाहिले मी नदीच्या किनारीं

तुला पाहिले मी नदीच्या किनारीं
तुझे केस पाठीवरी मोकळे
इथे दाट छायांतुनी रंग गळतात
या वृक्षमाळेंतले सावळे !

तुझी पावलें गे धुक्याच्या महालात
ना वाजली ना कधी नादली
निळागर्द भासे नभाचा किनारा
न माझी मला अन्‌ तुला सावली ...

धराया विनाशास संदर्भ माझे
जशा संचिताने दिशा पेटल्या
तुझ्या सांद्र ओढाळ देहात तुजला
नदीच्या कळा कोणत्या भेटल्या ...

मनावेगळी लाट व्यापे मनाला
जसा डोंगरी चंद्र हा मावळे
पुढे का उभी तू, तुझे दुःख झरते ?
जसे संचिताचे ऋतु कोवळे ...

अशी ओल जातां तुझ्या स्पंदनातून
आकांत माझ्या उरीं केवढा
तमांतूनही मंद तार्‍याप्रमाणे
दिसे की तुझ्या बिल्वरांचा चुडा ...

Monday, May 4, 2015

मैं ये सोचकर उसके दर से उठा था

मैं ये सोचकर उसके दर से उठा था
के वो रोक लेगी मना लेगी मुझको

हवाओं में लहराता आता था दामन
के दामन पकड़कर बिठा लेगी मुझको

कदम ऐसे अंदाज़ से उठ रहे थे
के आवाज़ देकर बुला लेगी मुझको

मगर उसने रोका
न उसने मनाया
न दामन ही पकड़ा
न मुझको बिठाया
न आवाज़ ही दी
न वापस बुलाया

मैं आहिस्ता आहिस्ता बढ़ता ही आया
यहाँ तक के उससे जुदा हो गया मैं ...

होके मजबूर मुझे

हो के मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा
ज़हर चुपके से दवा जानके खाया होगा
होके मजबूर...

भूपिंदर: दिल ने ऐसे भी कुछ अफ़साने सुनाए होंगे
            अश्क़ आँखों ने पिये और न बहाए होंगे
            बन्द कमरे में जो खत मेरे जलाए होंगे
            एक इक हर्फ़ जबीं पर उभर आया होगा

हो के मजबूर...

रफ़ी: उसने घबराके नज़र लाख बचाई होगी
        दिल की लुटती हुई दुनिया नज़र आई होगी
        मेज़ से जब मेरी तस्वीर हटाई होगी
        हर तरफ़ मुझको तड़पता हुआ पाया होगा

हो के मजबूर...

तलत: छेड़ की बात पे अरमाँ मचल आए होंगे
           ग़म दिखावे की हँसी ने न छुपाए होंगे
           नाम पर मेरे जब आँसू निकल आए होंगे - (२)
           सर न काँधे से सहेली के उठाया होगा

हो के मजबूर...

मन्ना डे: ज़ुल्फ़ ज़िद करके किसी ने जो बनाई होगी
              और भी ग़म की घटा मुखड़े पे छाई होगी
              बिजली नज़रों ने कई दिन न गिराई होगी
              रँग चहरे पे कई रोज़ न आया होगा

हो के मजबूर...

सदक़े हीर तुझ पे

सदक़े हीर तुझ पे हम फ़क़ीर सदक़े
तुझ से लुट कर तेरे ही द्वार आये
तू तो फूलों की सेज पे जा बैठी
मेरे हिस्से में राहों के ख़ार आये

झूठे वादे थे तेरे वफ़ा झूठी
खोटे सौदे में ज़िन्दगी हार आये
यही इश्क़ है तो कह दो दुनिया से
किसी बुत पे न किसी को प्यार आये

दे-दे दिल हमारा हमें वापस
जोगी ले कर यही पुकार आये
और माँगें जो कुछ तो मौत माँगें
तेरे दर पे हैं आख़िरी बार आये

जोगी ले कर यही पुकार आये